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राजस्थान पंचायत चुनाव स्थगन पर हाई कोर्ट ने मांगा जवाब, लोकतंत्र की मजबूती पर जोर
राजस्थान में 6,759 पंचायतों के चुनाव स्थगित कर निवर्तमान सरपंचों को प्रशासक नियुक्त करने के फैसले को चुनौती देते हुए राजस्थान हाई कोर्ट ने राज्य सरकार, पंचायतीराज विभाग और राज्य चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। यह निर्देश जस्टिस इंद्रजीत सिंह और जस्टिस विनोद कुमार भारवानी की खंडपीठ ने गिरिराज सिंह देवंदा और अन्य द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान जारी किया।
मुद्दा: संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि सरकार का यह कदम संविधान के अनुच्छेद 243ई और 243के के साथ राजस्थान पंचायत राज अधिनियम, 1994 की धारा 17 का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि पंचायतों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद चुनाव में देरी नहीं की जा सकती, और निवर्तमान सरपंचों को प्रशासक बनाना गैरकानूनी है।
याचिकाकर्ताओं के वकील प्रेमचंद देवंदा ने कोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि सरकार का यह निर्णय ग्रामीण लोकतांत्रिक प्रणाली को कमजोर करता है और संविधान में निहित पंचायत चुनाव की भावना के विपरीत है।
सरकार का पक्ष
राजस्थान सरकार ने 16 जनवरी 2025 को एक अधिसूचना जारी कर पंचायत चुनाव स्थगित करने का निर्णय लिया। सरकार ने यह भी घोषणा की कि प्रत्येक ग्राम पंचायत में प्रशासनिक समिति गठित की जाएगी, जिसमें उप सरपंच और वार्ड पंच सदस्य शामिल होंगे।
सरकार ने अपने फैसले को “वन स्टेट, वन इलेक्शन” मॉडल से प्रेरित बताते हुए इसे मध्य प्रदेश की तर्ज पर लिया गया कदम बताया।
हाई कोर्ट का रुख
हाई कोर्ट ने इस मामले को गंभीर मानते हुए सरकार को 4 फरवरी 2025 तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने पंचायत चुनावों की संवैधानिकता और समय पर चुनाव कराने के महत्व पर जोर दिया।
ग्रामीण लोकतंत्र की रक्षा पर याचिकाकर्ताओं का जोर
याचिकाकर्ताओं ने पंचायत चुनावों को लोकतंत्र की सबसे बुनियादी इकाई बताते हुए कहा कि निवर्तमान सरपंचों को प्रशासक नियुक्त करना न केवल अवैध है, बल्कि यह ग्रामीण स्तर पर लोकतंत्र को कमजोर करता है।
अगली सुनवाई का इंतजार
अब सभी की नजरें 4 फरवरी की सुनवाई पर टिकी हैं, जहां यह तय होगा कि पंचायत चुनावों के भविष्य और ग्रामीण प्रशासन में पारदर्शिता को लेकर अदालत क्या रुख अपनाती है।